आज भाईदूज थी। बहन एक नेत्री थी और भाई बहुत सारे पत्रकार। बहन ने अपने हाथों पर टेबल पर सजी थालियों में पूरन पोली..बेसन से बनी मीठी रोटी.. परोसी। पीछे चलने वाले कर्मचारी से दिखने वाले युवक के हाथ में घी का गिलास था। वे पोली पर इसे डालकर चूर-चूरकर खाने का आग्रह कर रहे थे। खाने के शौकीनों ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी। जमकर खाया और कहा अब तो एक-दो घंटे नींद लेना पड़ेगी।
सोचने की बात यह है कि बगैर सीजन भाईदूज कहां से आ गई? दरअसल, यह एक ऐसी भाईदूज है, जिसका इंदौरी पत्रकारों को बेसब्री से इंतजार रहता है। रहे भी क्यों न, एक ऐसी नेत्री के हाथों उन्हें खाने को मिलता है, जो आमतौर पर किसी को घास योग्य भी नहीं समझतीं। वे बार बार चुनाव जितती हैं। कुछ लोग इसे उनकी साफ-सुथरी छवि का जादू कहते हैं तो कुछ विरोधी पार्टी का वॉकओवर। मीडिया चरित्र से यह नेत्री पूरी तरह वाकिफ है और तोल-तोलकर ही उनसे ताल्लुकात बढ़ाती या घटाती हैं। जनभावनाओं के चलते मीडिया मजबूर है कि बगैर पैकेज नेत्री को तवज्जो देना पड़ती है।
पत्रकार बताते हैं भाईदूज की डोर से बांधना नेत्री का बहुत पुराना शगल है। हालांकि, खाने के दौरान डोर से बांधने जैसी कोई रस्म नहीं होती है। वे तो बस यह सोचकर एक पुस्तक देती हैं कि पत्रकार पढ़ाकू होते हैं। ज्यादातर वहां से वही पुस्तक मिलती है, जिसमें पार्टी की विचारधारा को सशक्त किया जा सके। इस बार भी ऐसा ही हुआ। पुस्तक राजनीति की सख्शियत विजयाराजे सिंधिया की आत्मकथा है और इसका शीर्षक है राजपथ से लोकपथ तक । पुस्तक अभी तक पढ़ी नहीं है, लेकिन इसके बैककवर पर अयोध्या को नगर नहीं, देश की भावनाओं का केंद्र बताया गया है। पुस्तक की संपादक मृदुला सिन्हा हैं।
भोजन का रसास्वदन करने वालों में पत्रकारों से साथ ही संपादक, इंचार्ज, वरिष्ठ पत्रकार, कॉलमिस्ट से लेकर मीडिया मालिकान तक मौजूद थे। दूसरी तरफ नेत्री खेमे के विधायक, पार्षद के साथ ही किचन केबिनेट के लोग। हंसी-ठिठोली भी हुई। एक पत्रकार ने यह कहकर पोली ले ली कि जब आपको सात बार से विपक्षी नहीं हरा सके तो मैं भला क्या कर सकता हूं, आप लाईं हैं तो खुशी से रख दीजिए।
यह भाईदूजी भोज नि:संदेह होटल, क्लब, फार्महाउस पर होने वाली पार्टियों से अलग था। पर उद्देश्य की दृष्टि से देखें तो यह किसी लाइजनिंग पार्टी से अधिक कुछ नहीं। जिस प्रकार से खबरें संस्कारित होती हैं, उसी तरह से यह पार्टी भी संस्कारित थी। दूसरे शब्दों में कहें तो यह बहुत ही सोफेस्टीकेटेड करप्शन था। देने वाला भी संस्कारवान और लेने वाला भी। एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं इसमें बुराई क्या है, कम से कम वे दूसरे नेताओं जैसी तो नहीं हैं, जो दावत के बाद छपास की चेष्ठा में रहते हैं। मैंने कहा यही तो खास बात है नेत्री की। उनके कुछ कहे बगैर ही काम बन जाता है।
यह सब पूरन पोली के साथ परोसे गए घी का नतीजा है। दिल के दौरे जैसी परेशानी न हो तो घी खाने में कोई बुराई नहीं है...बस जरूरत इस बात की है कि ऊंगलियां सलामत रहें ताकि दफ्तर में बैठकर कीबोर्ड का टका-टक इस्तेमाल कर सकें।
नोट: नेत्री सांसद हैं और उन्हें सुमित्रा महाजन कहा जाता है।
Sunday, January 10, 2010
एक से या अनेक से !
यह नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन) का नया प्रचार मंत्र है। मंत्र के साथ एक छोटा सा कंडोम कार्टूननुमा आकार में खड़ा है और हंसते हुए कह रहा है कंडोम से। नाको ने मंत्र जनहित में जारी किया है।
मेरे घर के पास बंगाली चौराहे के एक कोने पर इस विज्ञापन का बड़ा सा होर्डिंग टंगा है। चौराहे पर दिवंगत माधवराव सिंधिया की काली प्रतिमा की दिशा भी कुछ ऐसी है मानो उसकी निगाहें विज्ञापन के अर्थों को समझने की कोशिश कर रही हों। वह तो काले पत्थर की मूरत है, क्या सोच रही है, बता नहीं सकता, लेकिन मैं तो हाड़-मांस का ढांचा हूं। थोड़ा सा खुश इसलिए हूं कि घर से पत्नी को लेकर निकलते वक्त चौराहे पर होकर जाना जरूरी नहीं। बाजू की गली से एक शार्टकट निकलता है, जिससे चौराहे पर जाए बगैर भी अपनी राह पकड़ी जा सकती है। होर्डिंग टंगने के बाद से शार्टकट ही मेरा मार्ग है।
मैं रास्ता क्यों बदल रहा हूं? क्योंकि होर्डिंग हटवाना मेरे बस में नहीं। मैं तो बस होर्डिंग के मंत्र का अर्थ करता हूं तो डर जाता हूं। दरअसल इतना महिला भोगी नारा पहले कभी खुले आम देखने या पढऩे को नहीं मिला। नारे का संदेश साफ है महिला भोग की वस्तु है और सिर्फ किसी एक से संबंध बनाना न तो नैतिकता है और न ही समय की जरूरत। जिस्मनुमा वस्तु का सेवन करो। बस ध्यान यह रहे कि आपने कंडोम नाम का कवच धारण कर रखा हो!
नाको की इस अश्लील हिमाकत के पीछे कौन है? यह पूछने या बताने की जरूरत नहीं। मामूली समïझदार भी यह जानता है कि कुछ कंपनियों के आर्थिक असले को बढ़ाने के खातिर देश में कंडोम प्रमोशन का काम बहुत तेज रफ्तार के साथ जारी है। इस रफ्तार में नैतिकता, मूल्य, सच्चाई, स्त्री मर्यादा, शर्म, लिहाज, जैसे तमाम छोटे पर अहम स्टेशन पीछे छूट रहे हैं।
मेरे मित्र डॉ. मनोहर भंडारी और डॉ. सदाचारी सिंह तोमर इस कंडोम प्रमोशन के खिलाफ तथ्यों के साथ जुटे हैं। उन्होंने नाको से कुछ सवाल पूछे, जिनके जवाब नाको के पास भी मौजूद नहीं है। नाको से उन्हें मिली चिठ्ठी के मुताबिक नाको को यह पता नहीं है कि चुंबन से एड्स होता है या नहीं, और कंडोम पहनने भर से आप एड्स से बच जाएंगे या नहीं? जरा गौर करें, दो सवाल व जवाबों पर -
सवाल-
भारत में गर्भधारण व गुप्त रोगों के संक्रमण की दृष्टि से निरोध एवं अन्य माध्यमों की असफलता की कितनी औसत दर है?
जवाब-
इस विषय पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
मेरे घर के पास बंगाली चौराहे के एक कोने पर इस विज्ञापन का बड़ा सा होर्डिंग टंगा है। चौराहे पर दिवंगत माधवराव सिंधिया की काली प्रतिमा की दिशा भी कुछ ऐसी है मानो उसकी निगाहें विज्ञापन के अर्थों को समझने की कोशिश कर रही हों। वह तो काले पत्थर की मूरत है, क्या सोच रही है, बता नहीं सकता, लेकिन मैं तो हाड़-मांस का ढांचा हूं। थोड़ा सा खुश इसलिए हूं कि घर से पत्नी को लेकर निकलते वक्त चौराहे पर होकर जाना जरूरी नहीं। बाजू की गली से एक शार्टकट निकलता है, जिससे चौराहे पर जाए बगैर भी अपनी राह पकड़ी जा सकती है। होर्डिंग टंगने के बाद से शार्टकट ही मेरा मार्ग है।
मैं रास्ता क्यों बदल रहा हूं? क्योंकि होर्डिंग हटवाना मेरे बस में नहीं। मैं तो बस होर्डिंग के मंत्र का अर्थ करता हूं तो डर जाता हूं। दरअसल इतना महिला भोगी नारा पहले कभी खुले आम देखने या पढऩे को नहीं मिला। नारे का संदेश साफ है महिला भोग की वस्तु है और सिर्फ किसी एक से संबंध बनाना न तो नैतिकता है और न ही समय की जरूरत। जिस्मनुमा वस्तु का सेवन करो। बस ध्यान यह रहे कि आपने कंडोम नाम का कवच धारण कर रखा हो!
नाको की इस अश्लील हिमाकत के पीछे कौन है? यह पूछने या बताने की जरूरत नहीं। मामूली समïझदार भी यह जानता है कि कुछ कंपनियों के आर्थिक असले को बढ़ाने के खातिर देश में कंडोम प्रमोशन का काम बहुत तेज रफ्तार के साथ जारी है। इस रफ्तार में नैतिकता, मूल्य, सच्चाई, स्त्री मर्यादा, शर्म, लिहाज, जैसे तमाम छोटे पर अहम स्टेशन पीछे छूट रहे हैं।
मेरे मित्र डॉ. मनोहर भंडारी और डॉ. सदाचारी सिंह तोमर इस कंडोम प्रमोशन के खिलाफ तथ्यों के साथ जुटे हैं। उन्होंने नाको से कुछ सवाल पूछे, जिनके जवाब नाको के पास भी मौजूद नहीं है। नाको से उन्हें मिली चिठ्ठी के मुताबिक नाको को यह पता नहीं है कि चुंबन से एड्स होता है या नहीं, और कंडोम पहनने भर से आप एड्स से बच जाएंगे या नहीं? जरा गौर करें, दो सवाल व जवाबों पर -
सवाल-
नाको ने चुंबन को एचआईवी संक्रमण की दृष्टि से न तो निरापद बताया जाता है न ही संक्रामक। आखिर यह रहस्य क्यों?
जवाब -
इस पर विचार संबंधी पुस्तक भेजी जा रही है। (पुस्तक में एचआईवी संक्रमण से बचने के तरीके बताए गए हैं, इसमें चुबंन का जिक्र नहीं है।)
नाको ने चुंबन को एचआईवी संक्रमण की दृष्टि से न तो निरापद बताया जाता है न ही संक्रामक। आखिर यह रहस्य क्यों?
जवाब -
इस पर विचार संबंधी पुस्तक भेजी जा रही है। (पुस्तक में एचआईवी संक्रमण से बचने के तरीके बताए गए हैं, इसमें चुबंन का जिक्र नहीं है।)
सवाल-
भारत में गर्भधारण व गुप्त रोगों के संक्रमण की दृष्टि से निरोध एवं अन्य माध्यमों की असफलता की कितनी औसत दर है?
जवाब-
इस विषय पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
तो आप भी सोचिए ... देश में एड्स फैलने से रोकने के लिए बनाए गए सर्वोच्च संस्थान को यह पता नहीं है कि निरोध जैसे साधनों की असफलता का प्रतिशत क्या है? फिर भी आप चाहते हैं
एक से या अनेक से तो मर्जी आपकी।
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