यह एक ऐसे बुजुर्ग व लब्ध प्रतिष्ठित कवि का कथन है, जो खरी-खरी लिखते हैं और फिर उसे सुनाते भी हैं। बीती रात वे इंदौर के गांधी हाल में बने एक मंच पर थे। कविता कहने से पहले ही उन्होंने सभा में बैठे लोगों के बीच मूंगफली बेचने वाले को डपटते हुए यहां तक कह डाला कि जब हम एक मूंगफली वाले से नहीं निपट सकते, तो पाकिस्तान से भला कैसे निपटेंगे। हुआ भी ऐसा ही, उनकी डपट के बाद भी मूंगफली वाला मजे से काम में जुटा रहा। थोड़ी देर बाद वे फिर बिगड़े और 1000 प्रतिशत राजनीति से नाता रखने वाले कवि महोदय ने कह ही डाला 'मूंगफली वाले को बाहर फिंकवा दूंगा...चौंकिए मत मैं ऐसा कर चुका हूं। जब उन्हें अहसास हुआ कि कुछ ज्यादा डोज दे दिया, तो बात संभालते हुए कहा 'वह भी क्या करे, उसके पास भी पेट है। मंच सेवा-सुरभि, जिला प्रशासन, नगर पालिक निगम और इंदौर विकास प्राधिकरण का था। गणतंत्र दिवस के मौके पर छह कवियों को जुटाया गया। बालकवि बैरागी ने मूंगफली वाले के जरिए व्यवस्था पर गुस्सा उतारते हुए 'मैं मरूंगा नहीं, क्योंकि मैं ऐसा वैसा कुछ करूंगा नहीं जैसी गंभीर रचना सुनाई। पाठ करने से पहले उन्होंने कह दिया मुझे ताली नहीं चाहिए। उधर, अशोक चक्रधर ने तालियों को लेकर पाकिस्तान की एक यात्रा का जिक्र कर दिया और अपने खाते में तालियां जमा कर ली। बैरागी ने चक्रधर की तारीफ करते हुए इंटरनेट में हिंदी का ठेर सारा श्रेय भी उनकी झोली में डाल दिया। चक्रधर ने भी तारीफ मंजूर करते हुए बताया 'सेव के लिए पहले 'रक्षा करें प्रचलित था, इसे 'सहेजें मैंने ही करवाया, कह दिया।
रतलाम के अजहर हाशमी ने देशभक्ति के तराने सुनाए तो श्याम अंगारा ने अपनी रचनाओं से काव्य मंच का आगाज किया। शैलेष लोढ़ा देर से आए लेकिन उन्हें सुनने के लिए लोग जुटे रहे। चूंकि वे कवि से अधिक अब तारक मेहता का उल्टा चश्मा से प्रसिद्ध हो चुके हैं। जो भी हो, एक कवि के लिए प्रसिद्ध ही सबकुछ है।
किरकिरी मंच पर पहुंचे इंदौरियों ने ही की। संचालन की ठिली डोर थामने वाले प्रो. राजीव शर्मा ने तीन चूहों का घटिया चुटकुला सुनाकर पंचम की फेल के लोगों का भद्दा मजाक उड़ाया। हुटिंग हुई तो बीच में एक दफा उन्हें कहना पड़ा, मैं आपके बीच तीस-चालीस सेकंड ही रहूंगा। संजय पटेल भी बीच में एकेवीएन के एक अफसर को मंच पर बुलाने के बहाने चढ़े और दस मिनट खराब कर गए। महापौर कृष्णमुरारी मोघे आयोजक होने के बावजूद काव्य पाठ शुरू होने के बाद आए और मंच पर चढ़कर स्वागत सत्कार टाइप का कृत्य कर गए।
खैर, बैरागी ने भवानीप्रसाद मिश्र और कन्हैयालाल सेठिया के दो संस्मरण सुनाकर हौंसला बढ़ाया। मिश्र ने कहा था आलोचकों के स्मारक नहीं बनते, इसलिए उनकी परवाह नहीं करना चाहिए, जबकि सेठिया ने लघुकथा में मिट्टी के घड़े को पीतल के घड़े से इसलिए बेहतर बताया था, क्योंकि वह पानी को अपने शरीर में उतार लेता है। चक्रधर और बैरागी दोनों ने ही चिंता जताई कि कवि सम्मेलनों में महिलाओं की उपस्थिति चिंता का कारण रहा है, क्योंकि महिला का उपहास धड़ल्ले से हो रहा है।