यह पोस्ट उस शख्स के नाम जिनकी प्रजाति अब दुनिया में खत्म होने को है। शख्स उज्जैन का है और जब इंदौर आया तो मुलाकात का मौका मिला। उससे हुई बातचीत को लफ्ज दिए हैं। गौर करें...
पहले तो मेरा परिचय दे दूं। मेरा नाम शहजाद है। मेरी उम्र यही कोई 25-26 होगी। उज्जैन न्यू महाकाल रोड की गली नंबर सात के कोट मोहल्ला में 600 रुपए भाड़े के एक कमरे वाले मकान में रहता हूं। साथ में पत्नी फरिदा, दो बेटियां व एक बेटा भी है। उज्जैन की सड़कों पर दौडऩे वाले मेरे ऑटो का नंबर एमपी-09, केबी-4274 है। इसके किराए के हर दिन साठ रुपए चुकाता हूं।
अब बात उस लम्हे की जब अल्लाह ने मेरा इम्तेहान लिया। गुरुवार (25/03/10) सुबह जब घड़ी में आठ बज रहे थे, तब मैं ऑटो की सफाई में इस उम्मीद से मशगूल था कि आज ज्यादा सवारियां मिलेगी। तभी ऑटो में एक बेग दिखा। चौंका और इसे खोला। इसमें सोने के गहने देखे तो फिर से चौंका। गहने ही गहने दिख रहे थे। चौंकने के साथ ही घबरा भी गया। बेग उठाया और पास ही रहने वाले ससुर चांद खां के पास भागा। हांफते-हांफते उन्हें बताया कि कोई सवारी गाड़ी में जेवरात का बेग भूल गई है। हिम्मत बंधाई। मैंने कहा यह पुलिस को दे दें, ताकि जिसका हो उसे मिल जाए। पता नहीं उस बेचारे का क्या हाल हो रहा होगा। उस वक्त मुझे कुरआन की वह आयतें याद आ गईं, जिसमें खुदा का हुक्म है कि हराम की कमाई खाना गुनाह है। जो सामान मुझे मिला, वह किसी की अमानत थी और इस्लाम अमानत में खयानत की इजाजत नहीं देता।
सोने से भरा बेग पुलिस के हाथों तक पहुंचाने में करीब दो घंटे का वक्त लगा। ये दो घंटे पूरे जीवन पर भारी रहे। इस दौरान मैंने न जाने कितनी जिंदगियां जी ली। जब सवारी नहीं मिलती है और शाम को खाली हाथ घर लौटता हूं तो अल्लाह की तंगदिली के जो ख्याल आते हैं, वे भी ध्यान आए। छह साल की शाईना, चार की तरन्नुम और दो वर्ष के अयान के चेहरे दिलो-दिमाग में छाने लगे। उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल जो बनाना है। वह शिक्षा उन्हें दिलाना है, जो मैं नहीं पा सका। फरिदा से किया गहनों का वादा भी याद भी आया। पिता, जिन्हें टेलरिंग के पेश ने जुड़े लोग अब्दुल सत्तार सफारी स्पेशलिस्ट के नाम से जानते हैं, के बारे में सोचा, क्या वे बुढ़ापे में भी आंखे दुखा-दुखाकर सिलाई करते रहेंगे। और भी न जाने क्या-क्या था, जो मन में आया। सारी बातों पर भारी थे बस दो लफ्ज ईमान या हराम। मैंने ईमान को चुना। पुलिस के पास पहुंचे तो पता चला कि गहने 32 लाख रुपए के हैं।
आज मन पर कोई बोझ या वजन नहीं है। गहने छुपा लेता तो हराम की कमाई से घर के हालात बदल लेता, लेकिन कब तक, कभी न कभी तो पुलिस को पता चलता। तब मैं जेल में होता और पूरा परिवार सड़क पर। जो हुआ अ'छा ही हुआ। गहने वाले भैय्या ने एक लाख रुपए के इनाम की जो घोषणा की है, उससे अब एक नया सीएनजी ऑटो रिक्शा खरीदूंगा, ताकि रोज का भाड़ा नहीं देना पड़े। उम्मीद है, अल्लाह मेरा साथ देता रहेगा। ऑटो से होने वाली ईमान की कमाई से ही मैं एक दिन बड़ा आदमी बनूंगा। ईमानदारी से मेरा और मेरे परिवार का सिर जिस तरह फक्र से ऊंचा हुआ है, मैं तो चाहता हूं सारी दुनिया को ईमानदारी से मिलने वाले सकून और शांति का अनुभव हो।
चलता हूं क्योंकि मुझे ऑटो चलाने जाना है...सवारियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाना है...वे चैन से पहुंचेंगे तो ही मुझे भी चैन मिलेगा।
(बकलम विजय चौधरी)
पोस्ट पढने के बाद कुछ देर के लिए निशब्द हो गया
ReplyDeleteहर दिन गरीबी से लड़ने वाले शहजाद भाई की ईमानदारी को सलाम
अल्लाह उनको दिन दुनी रात चौगुनी बरकत दे
rachana ka shershak bada sateek hai,par is nasl ke kuchh hi log insaniyat par logo ka vishvas kayam rakhne me madad karte hai.
ReplyDeleteunaki nek niyati ko hazaro salam.......allah unko khushiyon ki nemate bakhshe.