Wednesday, January 13, 2010

विवेकानंदजी, जय श्रीराम


कल सुबह रजाई में था तभी बाहर से ढोल-बाजों की आवाजें गूंजी। नींद से उठकर खिड़की से झांका। कुछ स्कूली छात्र-छात्राएं जुलूस के रूप में फैरी निकाल रहे थे। अवसर था युवा दिवस, जो विवेकानंद जयंती पर मनाया जाता है। खुशी हुई, इस बहाने ही सही लेकिन बच्चे विवेकानंद को याद कर रहे हैं। अलसाते हुए फिर रजाई में घुसने ही वाला था कि नारा गूंजा 'जय श्रीराम...जय-जय श्रीराम। मैं चौंका कि यह क्या हो गया। फिर झांका तो देखा पीछे आने वाले बच्चों का सरस्वती शिशु मंदिर के एक अध्यापक नारे लगवा रहे थे। छात्र-छात्राएं हाथ ऊंचे कर-करके समर्थन भी दे रहे थे। छात्राओं के गले में केसरिया दुपट्टा भी डला था। नारे लगते काफिले का समापन एक झांकी से हुआ। इसमें तीन बच्चे एक झोपड़ी में राम-लक्ष्मण-सीता बनकर बैठे थे। चूंकि ठंड अधिक थी, इसलिए सभी ने टोपे पहने थे। साथ ही नुक्ती भी खा रहे थे।
तो, बैचेनी के साथ युवा दिवस की शुरुआत हुई। अखबार उठाए तो मप्र सरकार के विज्ञापन दिखे। सभी सरकारी स्कूलों में सूर्य नमस्कार का ऐलान किया गया था। ऐसा लगा मानो किसी योग विद्वान का जन्मदिन मनाया जा रहा हो। खैर, बच्चों ने शिक्षकों के साथ सरकारी आदेश का पालन किया। चूंकि रात में बारिश हुई थी, इसलिए मैदान से सूर्य के नमस्कार की संभावना तो कम ही थी। आदेश था, इसलिए कहीं बरामदे में तो कहीं हॉल में प्रतीक के रुप में सूर्य को नमन दिया। दफ्तर पहुंचा तो फोटो देखा। एक स्कूल में महापौर कुछ बच्चों के साथ नमस्कार कर रहे थे। बच्चे शर्ट-पेंट में थे, जबकि महापौर ठंड से बचने का पूरा प्रबंध करके आए थे, यानी जर्सी वगैर शरीर पर डाल रखी थी। 
इस तरह से विवेकानंद के मायने बदल रहे हैं। वे राम भक्ति का एक पर्व बनकर रह गए हैं और उनका सांप्रदायिकरण भी हो गया है। भले ही उनका सूर्य नमस्कार से गहरा नाता न रहा हो। पर वे योग गुरु भी बन गए हैं। युवा दिवस के नाम पर जो कुछ राज्य में हुआ, वह अजीब सा संकेत देता है। अगली पीढ़ी को जब जवान होगे तो विवेकानंद को क्या समझेगें? क्या उन्हें कट्टर हिंदुवादी संत माना जाएगा? या राम कथाकार?

1 comment:

  1. इसी बहाने कम से कम नाम तो याद रहेगा वरना तो अनेक नाम भी खो जायेंगे..

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