Saturday, April 3, 2010

तो क्या सो रहे थे कोर्ट?

कानून की देवी की आंखों पर पट्टी है, फिर भी कहा जाता है कि वह सबके साथ न्याय करती है। पर ये क्या ... मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के बारे में तो यह देवी पिछड़ गई। देवी की देखादेखी पूरी की पूरी कोर्टों ने भी आंखों पर पट्टी बांध ली। पट्टी 12 बरस से पड़ी हुई है। हालांकि, पट्टी तो बहुत पहले ही पड़ी थी, लेकिन 1993 में इंदौर के एक व्यक्ति ने इस पट्टी को खोल दिया था।
इस व्यक्ति का नाम सत्यपाल आनंद है, जो बीते 30 बरस से जनहित के मुद्दों पर लगातार कोर्टों में याचिकाएं दाखिल कर रहा है। आनंद ने 1994 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगाकर मांग की थी कि संविधान लागू होते वक्त अनुच्छेद 45 में दर्ज मौलिक अधिकार में 10 वर्ष की समय सीमा तय करके कहा गया था कि 14 वर्ष से कम आयु के हर बच्चे को देश में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बावजूद इसके न्यायपालिका, विधायिका एवं कार्यपालिका ने कभी इस अधिकार को अमल में लाने की कोशिश नहीं की। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष आनंद ने स्वयं अपने केस की दलीलें दी। इसके लिए देश के सभी राज्यों के एडवोकेट जरनल को सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होना पड़ा। 23 मार्च 1998 को कोर्ट ने आनंद के तर्कों से संतुष्ट होते हुए फैसला दिया कि शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य घोषित किया जाए। इसके लिए हर राज्य में अलग से याचिकाएं दाखिल करने की बात भी इस आदेश में दी गई।
आनंद ने इसके बाद आधा दर्जन राज्यों में स्वयं याचिका दाखिल करके मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा लागू करने की मांग की। हालांकि, किसी कोर्ट ने उनकी याचिकाओं को वह सम्मान नहीं दिया, जो कि दिया जाना था।
आनंद ने एक अप्रैल को एक बार फिर से पुरानी बातों को ताजा करते हुए एक ïजनहित याचिका मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में दाखिल की है। इसमें उन्होंने अपने पुराने अनुभवों को ध्यान देते हुए कहा है कि न्यायपालिका चाहती तो कानून बहुत पहले ही अमल में आ चुका होता। अफसोस, देश के करोड़ों बच्चों के साथ बरसों तक अन्याय होता रहा और कोर्टों ने कोई कार्रवाई नहीं की। नई जनहित याचिका में उन्होंने तर्क दिया है कि देश के सिरमौर शासकों ने कभी नहीं चाहा कि देश का हर बच्चा शिक्षित हो। यदि वे ऐसा चाहते तो उनकी गद्दी खतरे में होती। अभी भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो भाषण दे रहे हैं, उसमें कोई सच्चाई नहीं है। वे कह रहे हैं कि इस कानून से देश के करोड़ों बच्चों को न्याय मिलेगा और वे स्कूलों में दाखिल हो सकेंगे। आनंद ने कहा है कि प्रधानमंत्री की मंशा वास्तव में कानून को ईमानदारी से लागू करने की होती तो इसके लिए विशेष कोष की स्थापना की जाती। यह भी तय किया जाता कि अब देश में कोई भी बच्चा मजदूरी नहीं करेगा। परंतु न तो स्कूलों की हालत सुधारी गई है और न ही बच्चों की।
आनंद को उम्मीद है कि उनकी जनहित याचिका पर शीघ्र ही सुनवाई होगी और प्रधानमंत्री, केबिनेट सचिव, मप्र के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिïव को कोर्ट में तलब किया जाएगा। हालांकि, आनंद कहते हैं यह याचिका यहां खारिज हो गई तो वे इसे सुप्रीम कोर्ट ले जाएंगे, ताकि पूरे देश को पता चल सके कि देश की कोर्टें सो रही हैं...।